सात्विकी मकरंद छाया, ओढ़नी सी ओढ़ लूं मैं , तव सुमन की सौम्यता से.... सात्विकी मकरंद छाया, ओढ़नी सी ओढ़ लूं मैं , तव सुमन की सौम्यता से....
ये जींदगी रुक गई थी, राहें खो गई थीं ये जींदगी रुक गई थी, राहें खो...
माँ के ममता भरे आँचल से लेकर प्रीतम के आँगन तक का सफ़र है ज़िंदगी..! माँ के ममता भरे आँचल से लेकर प्रीतम के आँगन तक का सफ़र है ज़िंदगी..!
हम सबके अपने ही सब होते, तब मधुरिम मृदुतर बरसते रंग। हम सबके अपने ही सब होते, तब मधुरिम मृदुतर बरसते रंग।